
हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि केन्द्र सरकार ने हीरो इलेक्ट्रिक और ओकिनावा कंपनी को सब्सिडी लाभ देने पर कुछ समय के लिए रोक लगा दी है। दरअसल भारी उद्योग मंत्रालय ने इनके उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले पुर्जों की जांच के लिए नोटिस भेजा है।

इसका उद्देश्य यह जांचना है कि क्या पुर्जे और घटकों का निर्माण स्थानीय रूप से किया जाता है, जिसके लिए कंपनियां 10,000 करोड़ रुपये की FAME-II (फेम- II) योजना (इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों का तेजी से अपनाने और निर्माण) के तहत लाभ उठाती हैं।

टीओआई की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हीरो इलेक्ट्रिक और ओकिनावा के पहले, ग्रीव्स कॉटन के एम्पीयर, रतन इंडिया की रीवोल्ट, ओकाया और जितेंद्र ईवी जैसी इलेक्ट्रिक स्कटूर बनाने वाली कंपनियों को भी ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) के एक ऑडिट का सामना करना पड़ रहा है।

भारी उद्योग मंत्रालय की वेबसाइट में उल्लेख किया गया है कि सरकार ने हीरो इलेक्ट्रिक और ओकिनावा के लिए फेम-II सब्सिडी को रोकने का फैसला किया है। ये दोनों एक महीने में लगभग 17,000 यूनिट बेचते हैं।

वहीं रिवोल्ट, एम्पीयर, ओकाया और जितेंद्र संयुक्त रूप से हर महीने 10,000-11,000 यूनिट बेचते हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि एआरएआई की टेस्टिंग का पहला दौर सितंबर के पहले सप्ताह में हुआ था और दूसरा दौर जो 30 सितंबर को शुरू हुआ था और अभी तक चल रहा है।

सब्सिडी के रोक पर जब उनसे सवाल पूंछा गया तो हीरो इलेक्ट्रिक, ओकिनावा और रिवोल्ट ने मीडिया के सवालों का जवाब नहीं दिया, वहीं ग्रीव्स कॉटन ने कहा, “हमारे रानीपेट प्लांट में टेस्टिंग एजेंसी के अधिकारियों ने एक ऑडिट किया गया था और हमें क्लीन चिट दी गई थी।

दूसरी ओर, जितेंद्र ईवी ने कहा, कि जितेंद्र न्यू ईवी टेक को भारी उद्योग विभाग की तरफ से हमारी कंपनी के किसी भी मॉडल के बारे में कोई नोटिस नहीं मिली है, कि जिसमें कहा गया हो कि फेम -2 के तहत किसी तरह की सब्सिडी के लिए उन्हें अयोग्य किया है।

ड्राइवस्पार्क के विचार
सरकार मेड- इन- इंडिया मुहिम को बढ़ाने के लिए अक्सर स्थानीय स्तर पर बने उत्पाद पर ध्यान देती है और वह कंपनियों से भी कहती है कि वह ज्यादातर उन्हीं उत्पाद का इस्तेमाल करें जो भारत में ही तैयार किए गए हों। यही वजह है कि सरकारी एजेंसी इस तरह की मुहिम करती रहती है।