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बूढ़ातालाब में शिक्षाकर्मियों की विधवाओं ने लगाई छलांग, कहा- नियुक्ति दें, या जीवन से मुक्ति दें..

रायपुर। राजधानी के बूढ़ातालाब स्थित धरना स्थल पर दिवंगत शिक्षाकर्मियों की पत्नियों की बेमुद्दत हड़ताल जारी है। अनुकंपा नियुक्ति शिक्षाकर्मी कल्याण संघ के बैनर तले चल रहे इस आंदोलन में शिक्षाकर्मियों की विधवाओं का कहना है कि सरकार या तो नियुक्ति दें, या तो इस दुख भरे जीवन से मुक्ति दें। महिलाओं का कहना है कि इससे पहले उन्होंने मुख्यमंत्री निवास घेरने के लिए रैली निकाली, लेकिन अभी तक सरकार की ओर से किसी तरह का कोई आश्वासन तक नहीं मिला है।

राजधानी में कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला, जब दिवंगत शिक्षाकर्मियों की पत्नियों ने राजधानी के प्राचीन बूढ़ातालाब में छलांग लगाकर जान देने की कोशिश की। यहां मौके पर मौजूद महिला पुलिस बल ने किसी तरह महिलाओं को तालाब में डूबने में बचाया, लेकिन यहां महिलाएं अपनी अनुकंपा नियुक्ति के नारे लगाती रही। इस आंदोलन में शामिल 200 से अधिक महिलाएं बीते एक महीने से राजधानी के बूढ़ातालाब स्थित धरना स्थल पर धरने पर बैठी हुई है।

क्या है अनुकंपा नियुक्ति का विवाद
अनुकंपा नियुक्ति शिक्षाकर्मी कल्याण संघ की प्रांताध्यक्ष माधुरी मृगे व उपाध्यक्ष माधुरी चंद्रा ने बताया कि सरकार ने 1 जुलाई 2018 के पहले मृत शिक्षाकर्मियों के परिवारों को अनुकंपा देने से मना कर दिया है। ऐसे में उन परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो चुका है, जिस परिवार को सरकार की ओर से अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिल रही है। सरकार ने डीएड,बीएड का प्रावधान रखा है, लेकिन ऐसे अभ्यर्थियों को भी नियुक्ति नहीं दी जा रही है, जो कि डीएड,बीएड कर चुके हैं।

प्रदेशभर से शामिल हुईं महिलाएं
बूढ़ातालाब स्थित धरना स्थल पर चल रहे आंदोलन में रायपुर सहित कोरबा, रायगढ़,जशपुर, बिलासुर, महासमुंद आदि स्थानों से दिवंगत शिक्षाकर्मियों की पत्नियां शामिल हुई हैं। आने वाले दिनों में आंदोलन को और वृहद स्तर पर चलाए जाने की योजना है।

आठ महीने बाद भी नहीं आई रिपोर्ट
संगठन की महिला पदाधिकारियों ने बताया कि राज्य सरकार की घोषणा के मुताबिक दिवंगत शिक्षाकर्मियों के परिजनों को अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्रता का परीक्षण कर सुझाव एवं सेवा शर्ते निर्धारित करने बाबत अपर मुख्य सचिव रेणु पिल्ले की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया था। इसकी रिपोर्ट एक महीने के भीतर सौंपने पर सहमति बनी थी, लेकिन तीन सदस्यीय कमेटी ने आठ महीने बाद भी रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की है।

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